जब-जब एक इंसान के भीतर अहंकार, काम, क्रोध बढ़ता है ऐसे में वो मानवीय गुणों को खत्म कर बैठता है, इंसानियत गवा देता है – साध्वी सुश्री दिवेशा भारती

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इंद्री विजय कांबोज।। दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान द्वारा रामलीला ग्राउंड, इंद्री में आयोजित पांच दिवसीय श्री रामकथामृत के प्रथम दिवस के अंतर्गत दिव्य गुरु श्री आशुतोष महाराज जी की शिष्या साध्वी सुश्री दिवेशा भारती जी ने  नारद जी की जीवन गाथा को प्रस्तुत करते हुए बताया कि* नारद जी जब अभिमान के वशीभूत हो जाते हैं तब क्रोध में आकर  प्रभु को श्राप दे देते हैं, लेकिन जब अज्ञानता का पर्दा हटता है तब उन्हें पश्चाताप होता है|इस दौरान कथा के अंतर्गत बताया गया कि जब-जब एक इंसान के भीतर अहंकार, काम, क्रोध बढ़ता है ऐसे में वो मानवीय गुणों को खत्म कर बैठता है, इंसानियत गवा देता है और जब भी एक इंसान की ऐसी स्थिति होती है तब प्रभु एक इंसान को सत्य का मार्ग प्रशस्त कर उसके भीतर व्यक्तित्व का निर्माण करते हैं क्योंकि भगवान जब-जब भी धरा पर आते हैं तो उनका एकमात्र ध्येय होता है जन-जन को परम सत्य का साक्षात्कार करवाना ।

ब्रह्म ज्ञान के माध्यम से वे व्यक्ति के भीतर स्थित अविनाशी सत्य को प्रकट करते हैं यही एक संजीवनी औषधि है जिसके द्वारा एक इंसान के पाप-ताप नष्ट होते हैं। साध्वी जी ने बताया की प्रभु श्री राम जी का चरित्र महान है विराट व्यक्तित्व गुण, संस्कारों और आदर्शों से उनका जीवन कूट-कूट कर भरा है अगर उनके जीवन के साथ संबंधित एक गुण आदर्श को जीवन में धारण कर ले तो हमारे जीवन का कल्याण हो सकता है। विडंबना इस बात की है आज हमने अपने जीवन में प्रभु श्री राम के गुणों,संस्कारों एवं आदर्शों को लागू नहीं किया इस जीवन को विकारों के अधीन कर दिया इसी कारण एक इंसान पथभ्रष्ट होता है और उसे मार्ग प्रदान करने के लिए गुरु का उसके जीवन में आगमन होता है और जो गुरु के बतलाए मार्ग का अनुसरण कर लेता है उसी का जीवन सफलता की ऊंचाइयों को स्पर्श कर लेता है।
कथा का समापन प्रभु की आरती से हुआ।