बाजार में चाइनीज समान को लेकर सकते में कुम्हार बिरादरी

58

रवि कुमार बाबैन
दीपावली का त्यौहार हर वर्ग के लिए ढ़ेर सारी खुशीयां लेकर आता है। लेकिन एक वर्ग ऐसा भी है जो इस त्यौहार को लेेकर थोड़ा मायूस दिखाई दे रहा है। कुम्हार जाति के लोग पीढ़ी दर पीढ़ी लोगों के घरों को जगमगाने का काम करते है परन्तु चीइनीज सामान बाजार में आने से कुम्हार जाति के लोगो का  कारोबार कम होता नजर आ रहा है ओर उनकी उम्मीदों पर पानी फिरता नजर आ रहा है।
एक वर्ष के इंतजार के बाद दिन रात मेहनत करके ये लोग मिट्टी के बर्तन, दीये ओर अन्य समान बनाते है ओर कडी मेहनत करने के बावजूद भी मिट्टी के दीपकों का खरीददार बाजार में  नही मिलता है।
नही होती उम्मीद अनुसार बिक्री
ओमप्रकाश प्रजापत बताते है कि हमने अपनी जिन्दगी मिट्टी के बर्तन बनाने में गुजार दी मगर बजार में बढ रही चाइनीज वस्तुओं की मांग से हमारे रोजमर्रा की जिन्दगी पर असर पड़ रहा है। आठ से दस वर्ष पहले दिपावली के पर्व पर 15 हजार से 20 हजार दिये की बिक्री हो जाती थी वही अब इसकी कीमत मात्र 5 हजार से 6 हजार  रह गयी है। इसके अलावा बर्तन पकाने के लिए गोबर के उपले, लडक़ी, लडक़ी का फुस इत्यादि की जरूरत पड़ती है खर्चे ज्यादा ओर आमदनी कम होने से कुम्हार जाति के लोग सहमे हुए है। अब उन्हें चिंता सता रही है कि कही प्लास्टिक चाइनीज के समान और फैंसी दीयों का बढ़ता ट्रेंड़, उनके घरों के चूल्हे को ठंडा न कर दे।
बाजार में चाइनीज दीयों झालरों की भरमार
बाजार में चीन के खिलौने की भरमार है वहीं हर घर में इलेक्ट्रोनिक दीये और रंग बिरंगी झालरे ही नजर आती है। उस दौर में लोग मिट्टी के दीयों से ही घरों को रोशन करते थे। इस वजह से न सिर्फ कुम्हार बेरोजगार हो रहे है,बल्कि  पुश्तैंनी धंधा छोडऩे पर भी मजबूर है।