युवा अपने सपने पूरा करने के लिए विदेश ना जाकर अपने देश में अवसरों को तलाशें: मिहिर वैनर्जी

यूपीएससी में साक्षात्कार में विफल मिहिर वैनर्जी ने दिए देश को एक सौ चलीस से अधिक यूपीएसएसी और पीसीएस के सफल सितारे
भटकाव की अंधी गलियों में जाने से रोकने के लिए बच्चों को समय का दान दें
बच्चों पर अपने सपनों का बौझ नहीं लादें, उनकेा पैसा कमाने की मशीन नहीं अच्छा इंसान बनाएं
जब निराशा के बीच घिर जाएं तो माता पिता की सूनल आंखों में अपने लिए सपनों को देखें
एक समय था जब करनाल आने के लिए 26 रुपए नहीं थे आज बच्चों को सफलता का मूलमंत्र बता  रहे हैं अरनौली के स्टार
हिंदुस्तान में पहली बेटी के नाम लोहड़ी यमुनानगर के गांव में 2004 में मनाई थहि अपनी बेटी के जन्म पर
करनाल विजय काम्बोज||  देश के जाने माने शिक्षाविद तथा करनाल में बच्चों के आई ए एस आई पीएस और राज्य प्रशासनिक , पुलिस सेवाओं में शामिल होने का सपना साकार करवाने वाले साक्षात्कार विशेषज्ञ तथा अंग्रेजी गुरु मिहिर वैनर्जी ने कहा है कि आज देश को बचाने के लिए रक्तदान के साथ समय का दान भी जरूरी हैं। उन्होंने कहाकि आज बच्चों को डिप्रेशन, एकाकीपन नशे की तरफ जाने वाले रास्ते से रोकने के लिए जरूरी हैं। कि बच्चों को हम अपन समय दें। उनको मानसिक भावात्मक और संवेदनाओं के साथ विकसित होने का पूरा अवसर दें। माता पिता उन पर अपने सपनों का बौझ नहीं लादें। वह क्या बनना चाहते हैं। उसके लिए उनके सपनों को भी महत्व दें। वह आज करनाल में युवाओं और अभिभावकों के सपने उनका भविष्य और उनके समक्ष चुनौतियां विषय पर युवाओं को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि आज देश का युवा अंधे रास्ते पर भटक रहा हैं। युवा तनाव अनावश्यक दौड़, प्रतिस्पर्धा के तले दवता जा रहा है। उसकी मुस्कराहट गायब होती जा रही हैं। ऐसे में उसकी संवेदनाएं कुठित होती जा रही हैं। आज युवाओं के भटकाव के लिए अभिभावक, सरकारी की नीतियां स्कूल कालेजों के अध्यापक भी दोषी हैं। उन्होंने युवाओं से संवाद करते हुए कहा वह अपने भीतर के इंसान को मरने नहीं दें। आज यह कहना ठीक नहीं हैं कि इस देश में क्या रखा हैं। जो इस देश में हैं वह बाहर नहीं हैं। बाहर की कंपनियां भारत आ रही हैं। यहां रोजगार के बेहतर साधन हैं। अपने आपको साबित करने के लिए बहुत कुछ हैं। उसके बाद भी यदि बच्चे विदेश जाना चाहते हैं। तो यहां से अपने आपको कुछ बनाकर जाएं। जो बच्चे मजदूरी करने के लिए बिदेश जा रहे हैं। गलत रास्ते को अख्तियार कर रहे हैं। वह गलत हैं। उन्होंने अपनी जीवन यात्रा के बारे में बतााया कि वह यमुनानगर के एक छोटे से गांव अरनोली से हें। उनका सपना सेना में जाने का था। वह आई ए एस बनना चाहते थे। लेकिन साक्षात्कार में वह विफल होते चले गए। उसके बाद वह भी निराश हुए लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी। एक समय था जब उनके पास करनाल आने के लिए 26 रुपए नहीं थे। वह अपने एक दोस्त से उधार लेकर करनाल आए। यहां एक प्राइमरी स्कूल में टीचर लगे। उस समय उन्हें 1300 रुपए मासिक मिलते थे। उन्होंने जो बच्चों की आंखों में सपने देखे। उनके दम तोड़ते होंसले देखे। उस समय उन्होंने तय किया कि वह इन बच्चों के सपनों को सकार करेंगे। वह उसके बाद स्कूल में प्राचार्य भी रहे। उन्होंने 2004 में देश में पहली बेटी के नाम लोहड़ी अपनी बेटी के जन्म पर मनाई । यमुनानगर के अरनोली गांव में मनाई। आज उनकी बेटियां आस्ट्रेलिया में हैं। उन्हें इंटरनैशनल अवार्ड मिल चुके हैं। वह अब तक एक सौ चालीस आईएफएस, आई ए एस, आईपीएस, कई राज्यों की ज्यूडीशियरी सेवाओं के साथ प्रशासनिक सोवाओं के टापर दे चुके हैं। उन गलतियों को सुधार कर अपने शिष्यों के लिए सफलता के द्वार खोले। वह कहते हैं कि नीट या जेइई में सफलता नहीं मिली तो निराश होने की जरूरत नहीं। और भी मंजिले हैं। उन्होंने कहा कि सफलता के लिए मजबूत इरादे जरूरी हैं। उन्होंने बताया कि युवाओं को अपने माता पिता को नहीं छोउऩा चाहिए। उधर मातापिता भी बच्चों को पूरा समय दें। उनको भी सुनें। निराश आरै विफलता के रास्ते पर बच्चोंको अकेला नहीं छोडें। उन्होंने युवाओं से कहा कि वह जब निराश हों तो भजन सुनें। अस्पतालों में जाकर मरीजों की सेवा करें। और अपने माता पिता की सूनी आंखों में अपने लिए बुने सपनों को देखें। उनके सपनों को पूरा करने के लिए बिदेश में ही जाना जरूरी नही हैं। हमारे देश में भी अवसरों की कमी नहीं हैं। यदि हमारे देश में कोई कमी हैं तो बाहर से कोई सुधारने नहीं आएगा। हमे ही सुधारना होगा।

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