शहीद के जन्मदिवस पर राष्ट्रीय अवकाश घोषित करने की मांग
इन्द्री में शहीद के बलिदान दिवस पर फिर रचा इतिहास
इन्द्री विजय काम्बोज || समाज में जहां एक तरफ जातपात व धर्म का जहर घुल रहा है, वहीं शहीद-ए-आजम उधम सिंह ने जलियावाला बाग में निर्दोष लोगों के खून का बदला लेने के लिए अपना नाम राम मोहम्द सिंह आजाद रखकर सभी धर्मो का सम्मान कर एकता व अखण्डता की मिसाल पेश की। ऐसे महान शहीद को नमन् करते हुए आज हमें बेहद गौरव की अनुभूति हो रही हैं। यह शब्द शहीद उधम सिंह समिति के अध्यक्ष नम्बरदार मेहर सिंह निर्मल ने आज इन्द्री में शहीद उधम सिंह के बलिदान दिवस समारोह की अध्यक्षता करते हुए कहें। यह समारोह आज इन्द्री में शहीद उधम सिंह समिति के आहवान पर किया गया।
इस समारोह में सभी वर्ग, धर्म व सियासी दलों के नेताओं ने शहीद के चरणों में पुष्प अर्पित कर एकता की अनूठी मिसाल पेश की। शहीद उधम सिहं समिति ने आज फिर सभी सियासी दलों, सभी बिरादरी, संगठनों व धर्मो के लोगों को एक मंच पर लाकर इतिहास रचा। समारोह में बड़ी संख्या में लोग शहीद को नमन् करने पहुंचे। इस अवसर पर शहीद उधम सिंह की जीवनी पर गीत की प्रस्तुति से उपस्थितजनों के मन में जोश भर गया। समारोह हवन-यज्ञ और पूजन के साथ शुरू हुआ और शहीद की प्रतिमा पर पुष्प अर्पित करने के बाद प्रसाद वितरण पर कार्यक्रम का समापन हुआ। हवन-यज्ञ पण्डित राजेश शर्मा ने विधि विधान से कराया। समारोह में बोलते हुए शहीद उधम सिंह समिति के अध्यक्ष एमएस निर्मल ने कहा कि शहीद उधम सिहं का जीवन सघंर्ष से भर हुआ है जिस ने देश के लिए अपने प्रणों की आहूति देकर लोगों में देश प्रेम की प्ररेणा का संचार किया। शहीद उधम सिंह का जन्म 26 दिसम्बर 1899 को पंजाब के सुनाम कस्बे में साधारण किसान सरदार टहल सिंह के घर में हुआ। उधम सिंह के बचपन में मां-बाप का निधन हो गया। जब उधम सिंह ने दसवीं की परीक्षा पास कर जवानी की तरफ कदम रखा तो अंग्रेज हकूमत के गवर्नर माईकल ओयडवायर और जरनल डायर ने बैसाखी के पवित्र त्यौहार मनाने 13 अप्रैल 1919 को जलियांवाला बाग में इकटठे हुए निर्दोष लोगों पर गोलियां चलवा खूनी होली खेली। इस खूनी खेल के1800 से अधिक लोग शिकार हुए। इस दृश्य से उधम सिंह का खून खोल उठा तथा वहीं पर खून से सनी मिट्टी को उठकर इस घटना के दोषियों को सजा देने का निर्णय ले लिया। इसके लिए वह इग्ंलैड गए और भरी जनसभा में ही दोनों हत्यारों को मौत के घाट उतारने का इंतजार 21 साल तक अनेक यातनाएं झेलकर करते रहे।
आखिरकार वह दिन आ गया जिस की वह इंतजार में तडप रहे थे। जब 13 मार्च 1940 को किग्ंसटन हाल में हो रही एक जनसभा में माइक ओडवायर हिन्दुस्तानियों की हत्या करने की सेखी मार रहे थे तो उधम सिंह ने सरेआम माइक ओडवायर को गोलियों से भूनकर भारतीयों के खून का बदला ले लिया। देशवासियों का गर्व बढ़ाने वाले इस महान काम पर अंग्रेज हकूमत ने उन पर मुकदमा चलाया और 5 जून को उन्हे फांसी सुना दी गई तथा 31 जुलाई 1940 को उन्हे शहीद कर दिया गया। शहीद उधम सिहं समिति के अध्यक्ष ने कहा कि देशवासियों के मन में आजादी की ज्योत जलाने वाले उधम सिंह की इस शहादत के कारण ही उन्हें शहीदों में सर्वोच्च स्थान हासिल हुआ। उन्होंने कहा कि समिति शहीद उधम सिंह की जीवनी पाठ्य पुस्तकों में शामिल करने तथा उनके नाम पर प्रमुख सार्वजनिक स्थानों के नाम रखने की मांग करती है ताकि उनके जीवन से देशवासियों के मन में आपसी एकता, भाईचारे और राष्ट्र प्रेम की प्रेरणा मिलती रहें। इसके साथ ही शहीद उधम सिंह समिति शहीद उधम सिंह की तरह देश के लिए अपने प्राण न्यौछावर करने वाले सभी राष्ट्र भक्तों को नमन करती है। कार्यक्रम में पूर्व मन्त्री भीम मैहता,भाजपा नेता पण्डित धर्मपाल शांडिल्य, पूर्व विधायक नरेन्द्र सांगवान, नगरपालिका चेयरमैन राकेश कुमार, जेजेपी नेता गुरुदेव रंबा, मेहम सिंह राजेपुर, भाजपा नेता विजयपाल वकील, आप नेता प्रदीप काम्बोज, नवीन काम्बोज, सरपंच पवन काम्बोज, सरपचं यूनियन प्रधान प्रताप, निफा प्रधान श्रवण शर्मा, नम्बरदार एसोसिएशन विचार मंच के पदाधिकारी, अशोक काम्बोज बदरपुर, जीत राम कश्यप, मनजीत गोल्डी, मनोज काम्बोज बिट्टू, अंकुश काम्बोज, बलजीत बीबीपुर, बलजीत राणा, बलजीत मुरादगढ़, शिवकुमार काम्बोज, कमल काम्बोज खेड़ा, मेमपाल फाजिलपुर, जगदीश गुप्ता, कृष्ण बंसल, जयप्रकाश बंसल, जगमाल मास्टर, बलजीत राणा, पूर्ण नम्बरदार कैहरबा, नम्बरदार रणधीर भौजी, विजय काम्बोज, सुभाष खेड़ा, राकेश शाहपुर, सुदर्शन बजाज, शमेसिंह काम्बोज मंडी, मनीराम फजिलपुर, किरण मुरादगढ़, सुभाष मरादगढ़, जयपाल बंसल, सतीश काम्बोज, नरेन्द्र धूमसी, पंकज निर्मल, रोहताष मढ़ाण ने भी शहीद को श्रद्धासुमन भेंट किए।