भगवान शिव का मौन और विराग यह दर्शाता है कि सच्चा त्याग केवल बाहरी वस्तुओं का नहीं, बल्कि अहंकार और अज्ञान का होना चाहिए-साध्वी सुश्री सरोज भारती

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जुंडला विजय काम्बोज|| दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान द्वारा आयोजित भगवान शिव कथा का शुभारंभ 3 अक्टूबर को ग्राम जुंडला स्थित बाला सुंदरी मंदिर, असंध रोड, करनाल में श्रद्धा और भक्ति के वातावरण में किया गया। कथा के प्रथम दिवस में परम पूज्य दिव्य गुरु श्री आशुतोष महाराज जी की शिष्य साध्वी सुश्री सरोज भारती जी ने सती प्रसंग का दिव्य वर्णन करते हुए श्रद्धालुओं को भक्ति, आत्मज्ञान और त्याग का गूढ़ संदेश प्रदान किया।

साध्वी जी ने बताया कि जब माता सती ने भगवान श्रीराम को माता सीता की खोज में व्याकुल देखा, तो उनके मन में प्रश्न उठा कि जो स्वयं परमेश्वर हैं, वे मानव समान दुखी क्यों हैं? यह प्रश्न मानव बुद्धि की सीमित दृष्टि का प्रतीक है। उस समय माता सती दिव्य दृष्टि और ब्रह्मज्ञान से रहित थीं, इसी कारण वे भगवान श्रीराम के वास्तविक स्वरूप — परमब्रह्म — को पहचान नहीं सकीं।

कथा में बताया गया कि जब दृष्टि दिव्य नहीं होती, तब सत्य भी भ्रम प्रतीत होता है। इसी अज्ञान के कारण सती जी को भगवान शिव से वियोग सहना पड़ा और उन्हें पुनर्जन्म लेकर पार्वती रूप में शिव प्राप्ति का तप करना पड़ा। यह प्रसंग इस सत्य को उजागर करता है कि जब तक मनुष्य में ब्रह्मज्ञान का प्रकाश नहीं होता, तब तक वह संसार के मोह और दुखों में भटकता रहता है।

साध्वी सरोज भारती जी ने आगे कहा कि भगवान शिव का मौन और विराग यह दर्शाता है कि सच्चा त्याग केवल बाहरी वस्तुओं का नहीं, बल्कि अहंकार और अज्ञान का होना चाहिए। दिव्य दृष्टि ही वह शक्ति है जो भक्ति को बंधन से मुक्ति में परिवर्तित करती है।

कार्यक्रम के अंत में श्रद्धालुओं ने भक्ति भाव से भजन-कीर्तन में भाग लिया। संपूर्ण वातावरण “हर हर महादेव” के जयघोषों से गूंज उठा और कथा का समापन प्रभु की मंगल आरती के साथ हुआ।