जीवन जीने की कला सिखाती है गीता- वैशाली

गीता महोत्सव के दूसरे दिन सेमिनार आयोजित
 सांस्कृतिक कार्यक्रमों ने बिखेरी अनुपम छटा

करनाल विजय काम्बोज । आज यहां डा. मंगलसेन सभागार में गीता जयंती महोत्सव के दूसरे दिन सेमिनार का आयोजन किया गया। कार्यक्रम की मुख्य अतिथि नगर निगम आयुक्त डॉ. वैशाली शर्मा ने श्रीमद्भगवत गीता पर पुष्प अर्पित कर विभिन्न विभागों व स्वयं सहायता समूहों की ओर से लगाए गये स्टाल्स का अवलोकन किया। जिला स्तरीय गीता जयंती महोत्सव के दूसरे दिन भी आज सांस्कृतिक कार्यक्रमों ने अनुपम छटा बिखेरी। सूचना, जनसंपर्क एवं भाषा विभाग के कलाकारों के अलावा विभिन्न स्कूलों के विद्यार्थियों ने मनोहारी कार्यक्रम प्रस्तुत किये।

इस अवसर पर मुख्य अतिथि डॉ. वैशाली शर्मा ने कहा कि गीता एक पुस्तक नहीं बल्कि महाग्रंथ है। जीवन की हर समस्या का समाधान इसमें खोजा जा सकता है। यह जीवन जीने की कला सिखाती है। विद्यार्थियों को पाठ्य पुस्तकों के अलावा गीता का अध्ययन कर उसमें दिखाये रास्ते पर चलना चाहिये। उन्होंने कहा कि राष्ट्र के विकास के लिये संस्कृति और संस्कारों को बढ़ावा देना जरूरी है। कामयाबी के लिये धैर्यवान, साहसी और कर्तव्यनिष्ठ होना अनिवार्य है। उन्होंने कहा कि श्रीमद्भागवत गीता जीवन जीने की कला सिखाती है। विद्यार्थियों को पाठ्य पुस्तकों के साथ-साथ समय निकाल कर गीता का भी अध्ययन करना चाहिये।

 गुणवत्तापरक शिक्षा की चुनौती
सेमिनार में पूर्व उपकुलपति राधेश्याम शर्मा ने कहा कि आधुनिक परिप्रेक्ष्य में गीता का बहुत महत्व है। सांस्कृतिक, राजनीतिक और सामाजिक-आर्थिक संबंधों के मामले में पिछले कुछ सालों में व्यापक बदलाव आया है। आज चुनौती गुणवत्तापरक शिक्षा की है। भारत में युवाओं की संख्या सर्वाधिक है। आज अहम सवाल यह है कि युवाओं को सभ्यता, संस्कृति और नैतिक मूल्यों से कैसे जोड़ा जाये? श्रीमद्भागवत गीता भगवान श्रीकृष्ण द्वारा रचित ग्रंथ है। इसमें वेद, उपनिषद आदि ग्रंथों का सार निहित है। यह संपूर्ण जीवन शास्त्र है। गीता में धर्म का अर्थ कर्तव्यपरायणता बताया गया है। गीता में 18 अध्याय और 700 श्लोक हैं। यह व्यक्ति को अध्यात्मवाद की ओर अग्रेषित करती है। आत्मविश्वास के मामले में आज युवा कुछ कमजोर है। गीता का एक भी श्लोक पर अमल कर लिया तो जीवन सफल है। गीता का एक ही वाद है-मानव कल्याण।

 5140 साल पहले लिखी गई गीता
राजकीय महिला महाविद्यालय करनाल के प्रो. दीपक ने इस मौके पर बताया कि गीता 5140 साल पहले काव्य पाठ के रूप में लिखी गई थी जिसकी आज भी प्रासंगिकता है। इसके अध्ययन से जीवन में मार्गदर्शन मिलता है। आध्यात्मिक ज्ञान की प्राप्ति के लिये मन पर नियंत्रण जरूरी है। गीता पढ़ने से स्व परामर्श की प्रेरणा के साथ-साथ जनहित में उठाये जाने वाले सही अथवा गलत कदमों की जानकारी मिलती है।
 गीता भारत की पहचान
प्रो. वीरेंद्र चौहान ने कहा कि पांच हजार साल से अधिक पुरानी गीता को साल दर साल विस्मृत करते गये लेकिन आज लाखों विद्यार्थी एक साथ गीता के श्लोक का उच्चारण कर रहे हैं। यह परिवर्तन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राज्य सरकार के कुशल नेतृत्व के कारण संभव हो सका। गीता जयंती महोत्सव का आयोजन अंतरराष्ट्रीय स्तर पर होने लगा है। प्रधानमंत्री ने व्यवहार में लाकर यह दिखा दिया कि श्रीमद्भागवत गीता भारत की पहचान है। उन्होंने कहा कि हर घर, पुस्तकालय और व्यक्ति के पास श्रीमद्भागवत गीता धरोहर के रूप में होनी चाहिये।
सेमिनार में डीएवी महिला कॉलेज की प्रो. शिवांगी व सहायक प्रो. सीमा रानी ने भी शोध पत्र पढ़ा और गीता के महत्व के बारे में जानकारी दी। राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय के विद्यार्थियों ने गीता के श्लोकों का उच्चारण किया।  कामना नारंग ने नंद के दुलारे भजन की आकर्षक प्रस्तुति दी। लोक संपर्क विभाग के कलाकारों व स्कूली विद्यार्थियों ने मनोहारी सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत किये।
नोडल अधिकारी चीनी मिल के एमडी हितेंद्र शर्मा ने मुख्य अतिथि को स्मृति चिह्न भेंट किया। सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत करने वाले विद्यार्थियों को प्रशंसा पत्र व स्मृति चिन्ह भेंट किये गये। इस मौके पर डीआईपीआरओ मनोज कौशिक, डीईओ सुदेश ठकराल, उप जिला शिक्षा अधिकारी ज्योत्सना, जीओ गीता संस्था से श्याम बतरा, प्रिंसिपल सुरेश सैनी, महर्षि दयानंद राजकीय कन्या कॉलेज दादूपुर की प्रिंसिपल मेजर डॉ. अनिता जून, समाजसेवी सुभाष बुम्बक, लवलीन, संजीव शर्मा, एसएचजी की ब्लॉक कोऑर्डिनेटर सुनीता, ईशा चौधरी आदि मौजूद रहे।


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