फसल प्रबंधन जागरूकता वाहनों को हरी झंडी दिखाकर किया रवाना।
इन्द्री विजय काम्बोज || एसडीएम सुरेन्द्र पाल ने फसल अवशेषों को न जलाने बारे जागरूकता वाहनों को अपने कार्यालय से हरी झंडी दिखाकर रवाना किया। ये वाहन खंड इन्द्री के विभिन्न गांवों में पहुंचकर फसल अवशेष प्रबंधन के बारे लोगों को जागरूक करेंगे।
इस दौरान एसडीएम सुरेंद्र पाल ने सभी किसानों से आह्वान किया कि वे फसल अवशेषों को न जलाए। किसान या तो फसल अवशेषों को मशीनरी की सहायता से मिट्टी में मिश्रित कर दें अथवा स्ट्रा बेलर से पराली की बेल बनवा लें। उन्होंने बताया कि फसल अवशेषों को जलाने से न केवल हमारा पर्यावरण दूषित हो रहा है, बल्कि फसल अवशेष जलाने से हमारी भूमि की उर्वरा शक्ति भी कम होती है और इसका सीधा-सीधा असर हमारी पैदावार पर पड़ता है। उन्होंने कहा कि धान के अवशेषो को जलाने से हवा दूषित होती है और ये दूषित हवा हमारे ही नहीं बल्कि हमारी आने वाली पीढिय़ों के लिए भी खतरनाक है। पर्यावरण दूषित होने से हमें अनेक प्रकार की भंयकर बीमारियों का भी सामना करना पड़ता है।
एसडीएम ने बताया कि फसल अवशेष जलाने से भूमि की उपजाऊ शक्ति कम होती है। भूमि की उपरी सतह पर उपस्थित लाभदायक जीवाणु नष्ट हो जाते है। इसके साथ साथ हानिकारक गैसों का उत्सर्जन होता है, जिससे पर्यावरण दूषित होता है तथा मनुष्य के स्वास्थ्य पर कुप्रभाव पडता है और सांस लेने में तकलीफ होती है। वहीं फसल अवशेष जलाने से पैदा हुए धुएं से अस्थमा व कैंसर जैसे रोगों को भी बढ़ावा मिलता है। उन्होंने कहा कि पराली को जलाने से भूमि में मौजूद कई उपयोगी बैक्टीरिया व कीट नष्ट हो जाते हैं।
खंड कृषि अधिकारी डॉ.अश्वनी कुमार बताया कि फसल अवशेष में आग लगाने से आसपास की फसलों में आगजनी का भी भय बना रहता है। फसल अवशेषों को जलाने से रोकने के लिए विभिन्न टीमों का गठन कर दिया गया है जो गांवों में पहुंचकर निगरानी करेंगी। उन्होंने बताया कि वहीं मिट्टी की जैविक गुणवत्ता भी प्रभावित होती है। एक टन पराली जलाने से भूमि के पोषक तत्वों नाइट्रोजन 5.5 किलोग्राम,सल्फर 12 किलोग्राम,पोटाश 2.3 किलोग्राम,ऑर्गेनिक कार्बन-400 किलोग्राम के अनुसार हानि होती है।