नैनो यूरिया एवं नैनो डीएपी जागरूकता कार्यक्रम आयोजित

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करनाल  विजय  काम्बोज |।  इफ़को करनाल द्वारा सोमवार को के. वी .के., एन.डी. आर. आई, करनाल में “नैनो यूरिया एवं नैनो डीएपी जागरूकता कार्यक्रम” के अन्तर्गत शुगरमिल  करनाल  के फ़ील्ड स्टाफ़ के लिये प्रशिक्षण कार्यक्रम का‌ आयोजन ‌किया गया। जिसमे‌  शुगरमिल  करनाल  के फ़ील्ड स्टाफ़ के 50  सदस्यों ने भाग लिया।  शुगरमिल के शुगरकेन कंसल्टेंट  रोहताश  लाठर  ने फील्ड स्टाफ से अपील की कि वे किसानों तक नैनो यूरिया एवं नैनो डीएपी की सही जानकारी पहुंचाएं और अधिक से अधिक किसानों को इस तकनीक से जोड़ें। उप महाप्रबन्धक डॉ. विरेंन्द्र  मिगलानी  ने बताया कि इफ़को नेनो यूरिया पत्तियों के द्वारा सीधे अवशोषित होता है जिससे फसल को तुरंत पोषण मिलता है। जबकि ग्रेन्युलर यूरिया मिट्टी में मिलने और फिर पौधों तक पहुंचने मे समय लेता है। सामान्य यूरिया का अधिक उपयोग मिट्टी, जल और हवा को प्रदूषित करता है जबकि नैनो यूरिया  से नाइट्रोजन लीचिंग (नाइट्रोजन का बहना) कम होता है, जिससे पर्यावरण को नुकसान नहीं होता। इससे खेती की लागत घटती है और मुनाफा बढ़ता है। के. वी. के.  प्रमुख  डॉ. पंकज सारस्वत  ने बताया कि नैनों उर्वरकों को किसानों के बीच लोकप्रिय बनाने व किसानों को इसकॊ उपयोगिता समझाने की जरुरत है,जिससे किसान को इस नये उत्पाद का ‌लाभ प्राप्त हो सकेगा। डॉ. निरंजन सिंह, वरिष्ठ क्षेत्र प्रबंधक, इफको करनाल ने नैनों उर्वरकों पर चर्चा करते हुए बताया कि गन्ना एक प्रमुख नकदी फसल है जिसमें संतुलित और प्रभावी पोषण प्रबंधन की आवश्यकता होती है। पारंपरिक रासायनिक उर्वरकों के स्थान पर नैनो यूरिया और नैनो डीएपी जैसे नवीन उर्वरकों का उपयोग कृषि में तेजी से बढ़ रहा है। नैनो यूरिया के प्रयोग से उपज बढ़ने के साथ साथ उत्पाद की गुणवत्ता में भी वृद्धि होती है। उन्होने बताया कि क्योंकि इसका प्रयोग फसलों पर स्प्रे के रूप में किया जाता है, इसलिए इसकी प्रयोग क्षमता परम्परागत यूरिया से अधिक है। पौधे पत्तों व तने के माध्यम से इसको अवशोषित कर लेते हैं। नैनो डी ए पी के बारे में चर्चा करते हुए उन्होंने बताया कि नैनो डी ए पी भी परंपरागत डीएपी का विकल्प है व यह भी फ़सलों की उत्पादकता बढ़ाने में कारगर है।  नैनो डीएपी 500 मी ली एक एकड में प्रयोग होता है, जो 250 मी ली मात्रा बीज (5 मी ली प्रति किलो बीज) या कंद, पनीरी, पौध (5 मी ली प्रति लीटर पानी) में इस्तेमाल होगा व बचा 250 मी ली 100 लिटर पानी में मिलाकर 30-35 दिन की फ़सल पर स्प्रे करना है। धान में  250 मिली नैनो डी ए पी को 100 लीटर पानी मे मिलाकर धान की एक ऐकड़  की पौध को उसमे 30 मिनट डूबा कर उपचारित करके रोपाई करें। बची 250 मी ली नैनों डीएपी की आधी बोतल की मात्रा का प्रयोग रोपाई के 30-35 दिन बाद 100 लीटर पानी प्रति ऐकड़ मे प्रयोग करें। उन्होंने बताया कि इफको द्वारा नैनो उर्वरको के छिडकाव के लिये ड्रोन की सुविधा भी किसानों को उपलब्ध करवाई जा रही है जंहा किसान अपने खेत में ड्रोन से स्प्रे करवा सकते है।  एडीओ (गन्ना) हेमराज  ने गन्ना विकास से संबंधित योजनाओं की भी जानकारी दी  ।