हरियाणा में रिटायर्ड अफसरों को SP-DSP बनाए जाने पर पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट ने सरकार को बड़ा झटका दिया है। हाईकोर्ट ने एंटी करप्शन ब्यूरो ( ACB ) में हुई इन नियुक्ति के मामले में इससे संबंधित सभी रिकार्ड जब्त करने का आदेश दिया है।
दरअसल 2022 में 4 अप्रैल और 21 अक्टूबर को हरियाणा सरकार ने सेंट्रल ब्यूरो ऑफ इन्वेस्टिगेशन (CBI) के रिटायर्ड ऑफिसर्स शेषन बालासुब्रमण्यम् और रामास्वामी पार्थसारथी को SP ( ACB ) और DSP ( ACB ) फरीदाबाद के पद पर दोबारा नियुक्ति दे दी। इस केस में हाईकोर्ट ने सुनवाई करते हुए तल्ख टिप्पणी की है। हाईकोर्ट ने कहा है कि अभी एसीबी में नियुक्ति की है, कल को रिटायर्ड लोगों को पुलिस महानिदेशक (DGP) लगाने लगोगे।
24 घंटे में रिकॉर्ड जब्त के आदेश
हाईकोर्ट के जस्टिस विनोद एस. भारद्वाज ने रिश्वत मामले में गिरफ्तार विवादास्पद IRS अधिकारी और पूर्व अतिरिक्त आबकारी एवं कराधान आयुक्त धीरज गर्ग की याचिका पर सुनवाई करते हुए यह आदेश पारित किए है। उन्होंने हरियाणा सरकार के उस आदेश को रद करने की मांग की है, जिसके तहत CBI के रिटायर्ड ऑफिसर्स को एंटी करप्शन ब्यूरो में नियुक्त किया गया था।
हाईकोर्ट ने इस केस में नियुक्ति से संबंधित संपूर्ण रिकार्ड तलब करते हुए वकील अक्षय जिंदल को लोकल कमिश्नर नियुक्त किया, ताकि उनकी नियुक्ति से संबंधित संपूर्ण रिकार्ड CS ऑफिस से जब्त किया जा सके और 24 घंटे में उसे हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल विजिलेंस के पास जमा कराया जा सके।
हाईकोर्ट ने पूछा- जांच कौन अधिकारी करेगा
कोर्ट ने हरियाणा सरकार के वकील से यह प्रस्ताव भी मांगा है कि इन अवैध नियुक्तियों के मामले की जांच कौन सा अधिकारी करेगा , चाहे वह सेवानिवृत्त हाईकोर्ट जज हो या डीजीपी रैंक से ऊपर का कोई अधिकारी हाई कोर्ट का मानना है कि जब तत्कालीन मुख्यमंत्री ( सीएम ) ने इन पुलिसकर्मियों को सलाहकार के तौर पर नियुक्त करने के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी थी , तो तत्कालीन डीजी एसीबी ने उन्हें एसपी और डीएसपी के पद पर क्यों नियुक्त किया ।
रिटायर्ड ऑफिसर्स से जांच वापस लेने के दिए थे आदेश
नवंबर 2023 में हाईकोर्ट ने एसीबी द्वारा इन रिटायर्ड ऑफिसर्स को सौंपे गए मामलों की जांच तत्काल प्रभाव से वापस लेने का आदेश दिया था। खास बात यह है कि एसीबी में डीएसपी या एसपी के तौर पर कार्यरत इन पूर्व CBI पुलिसकर्मियों ने भ्रष्टाचार के कई अहम मामलों की जांच की है।
हाईकोर्ट ने यह आदेश तब पारित किया था जब राज्य सरकार यह बताने में विफल रही थी कि कानून के किस मूल प्रावधान के तहत पुलिस अधिकारियों को मामलों की जांच करने और राजपत्रित अधिकारियों की शक्तियों का प्रयोग करने तथा अंतिम रिपोर्ट दाखिल करने के लिए अनुबंध के आधार पर नियुक्त किया जा सकता है ।