इंद्री विजय कांबोज।।
दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान द्वारा रामलीला ग्राउंड, इंद्री में आयोजित पांच दिवसीय श्री रामकथामृत के पंचम एवम् समापन दिवस के अंतर्गत दिव्य गुरु श्री आशुतोष महाराज जी की शिष्या साध्वी सुश्री दिवेशा भारती जी ने अपनी मधुर वाणी में व्याखान देते हुए कहा कि सुन्दर काण्ड प्रसंग जिसमें एक भक्त के भक्ति मार्ग पर किए जा रहे संघर्ष की चरम सीमा को भक्त हनुमान के माध्यम से प्रतिपादित किया गया है। स्वामी जी ने बताया कि इन्सान का जीवन नदी की तरह है। नदी के मार्ग में चट्टानें आती हैं, पत्थर आते हैं अनेको रुकावटें आती हैं पर नदी उनकी परवाह न करती हुई इन्हे तोड़ती हुई आगे बढ़ जाती है। इसी प्रकार की ही बाधाओं को पार किया भक्त हनुमान जी ने। जब वे माता सीता जी की खोज में लंका के लिए प्रस्थान करते हैं।
साध्वी जी ने बताया कि हनुमान जी ने मैनाक पर्वत, सुरसा, और सिंहिका जैसी बाधाओं को पार करते हुए लंका में प्रवेश करते हैं। जो बाहर से देखने पर सुंदर प्रतीत होती है पर भीतर पापाचार, अनाचार हो रहा है। प्रत्येक मानव की यही स्थिति है। बाहर से व्यक्ति अपने शरीर को सजा संवार कर रखता है पर अगर अपनी आत्मा का कल्याण नहीं करता तो उसका शरीर लंका की भांति ही है।
यदि अंतःकरण में मैल कपट बुराईयाँ हैं तो व्यक्ति कभी भी शांतमय जीवन यापन नहीं कर सकता। यही कुछ आज हनुमान जी देख रहे हैं।
इसलिए उन्होने कहा कि यदि आप आत्म कल्याण करवाना चाहते हैं, भीतर की बुराईयों को, पापाचार को समाप्त करना चाहते हैं, तो एक पूर्ण गुरु की शरण में जाना होगा। जो आप के भीतर ईश्वर का दर्शन करवा दे। ईश्वरीय अनुभूति को दिव्य ज्योति जागृति संस्थान ब्रह्यज्ञान के द्वारा करवाता भी है,मात्र बातें नही है। ब्रह्यज्ञान के आधार पर ही परम पूज्नीय आशुतोष महाराज जी युवा वर्ग को सही दिशा दिखा रहे है। नारी का उत्थान कर रहे हैं। कन्या भ्रूण हत्या,नशा, भ्रष्टाचार,व्यभिचार जैसी कुरीतियों को जड़ से मिटा रहे है। एशिया की सबसे बड़ी तिहाड़ जेल में प्रभु के प्रचार को कर ख्ँाूखार कैदियों के जीवन को भी सँवार रहे है। नेत्रहीन वर्ग जो समाज पर स्वयं को बोझ समझता था, आज प्रभु को पाकर अपने आँखों में रोशनी न होने पर भी समाज को रोशन करने के लिए मोमबतियां बना रहे हैं । संस्थान के द्वारा नेत्रहीन वर्ग व उन कैदियों के रोजगार के लिए कार्यशालायों का निर्माण किया गया है। संस्थान आध्यात्मिक संस्था के साथ-साथ एक समाजिक कल्याण कार्यो में भी संलग्न रहता है। प्रत्येक दिन की भांति कथा के अंतिम दिवस भी श्रद्धालुगणों ने रामराज्य उत्सव मनाते हुए कथारस का पान किया व ब्रह्मज्ञान के संदेश को प्राप्त कर जीवन के श्रेय मार्ग को पाया।