इन्द्री विजय कांबोज।।
एसडीएम सुरेन्द्र पाल के निर्देशानुसार खंड विकास एवं पंचायत अधिकारी कार्यालय के सभागार में कृषि एवं किसान कल्याण व बागवानी विभाग के अधिकारियों द्वारा फसल अवशेष प्रबंधन कार्यक्रम आयोजित किया गया। इस कार्यक्रम में खंड के विभिन्न गांवों के चौकीदार, सफाई कर्मचारी, ट्यूबवेल ऑपरेटर सहित कृषि एवं बागवानी विभाग के कर्मचारियों ने भाग लिया।
खंड कृषि अधिकारी डॉ. अश्वनी काम्बोज नेे कार्यक्रम में बोलते हुए कहा कि धान की कटाई का सीजन चल रहा है। इसलिए आप सभी एक-दूसरे के सहयोग से किसानों को फसल अवशेष न जलाने बारे जागरूक करें। उन्होंने कहा कि फसल अवशेष जलाने से न केवल किसानों को नुकसान होता है बल्कि हम सभी को भंयकर बीमारियों का सामना करना पड़ता है। फसल अवशेष जलाने से हमारी खेत की भूमि भी बंजर हो रही है और पैदावार में लगातार गिरावट आ रही है। उन्होंने कहा कि आप सभी प्रशासन से जुड़े हुए है और प्रशासन द्वारा फसल अवशेष जलाने वाले किसानों के खिलाफ कड़ी कार्यवाही अमल में लाई जा रही है। इसलिए आप अपनी डयूटी गंभीरता से निभाएं। इस कार्य में किसी भी स्तर पर लापरवाही नहीं बरती जाए।
बाक्स:- फसल अवशेष न जलाए, बल्कि आधुनिक उपकरणों से करें प्रबंधन।
खंड कृषि अधिकारी डॉ. अश्वनी काम्बोज ने किसानों से आह्वान किया कि खेतों में फसल कटाई के बाद फानों में आग न लगाएं, बल्कि उनका खेत में ही समुचित प्रबंधन करें। फसल अवशेष जलाने से उत्पन्न होने वाले धूंए के कारण हमारा पर्यावरण लगातार दूषित होता जा रहा है, जिसकी वजह से अनेक जानलेवा बीमारियां पैदा होती है। उन्होंने कहा कि किसान सुपर सीडर की मदद से खेत में ही फसल अवशेषों का प्रबंधन कर आसानी से फसल की बिजाई कर सकते हैं, ऐसा करने से हमारी जमीन की उर्वरा शक्ति भी बढ़ती है। सुपर सीडर की मदद से फसल अवशेष पूरी तरह मिट्टी में मिल जाते हैं।
खंड कृषि अधिकारी डॉ. अश्विनी काम्बोज ने बताया कि फसल अवशेष जलाने से पोषक तत्वों का नुकसान होता है। फसल अवशेष जलाने से शत-प्रतिशत नाइट्रोजन व काफी मात्रा में सल्फर का नुकसान होता है तथा इसके साथ-साथ जैविक पदार्थ नष्ट हो जाते हैं। उन्होंने ने बताया कि फसल अवशेष जलाने से कार्बन मोनोऑक्साइड, कार्बन डाइऑक्साइड, राख, मीथेन व अन्य अशुद्धियाँ उत्पन्न होती है। इससे वायु प्रदूषण बढ़ता है। उन्होंने बताया कि बताया कि फसल अवशेष में आग लगाने से आसपास के खेतों में खड़ी फसलों में आगजनी का भी भय बना रहता है। पराली प्रबंधन हेतू सरकार द्वारा किसानों के लिए अनेकों योजनाएं चलाई है। यदि किसान अपने खेत में पराली प्रबंधन का कार्य करता है तो उसे सरकार की ओर से एक हजार रूपये प्रति एकड़ की दर से प्रोत्साहन राशि भी उपलब्ध करवाई जाती है।
खंड कृषि अधिकारी डॉ. अश्वनी काम्बोज नेे कार्यक्रम में बोलते हुए कहा कि धान की कटाई का सीजन चल रहा है। इसलिए आप सभी एक-दूसरे के सहयोग से किसानों को फसल अवशेष न जलाने बारे जागरूक करें। उन्होंने कहा कि फसल अवशेष जलाने से न केवल किसानों को नुकसान होता है बल्कि हम सभी को भंयकर बीमारियों का सामना करना पड़ता है। फसल अवशेष जलाने से हमारी खेत की भूमि भी बंजर हो रही है और पैदावार में लगातार गिरावट आ रही है। उन्होंने कहा कि आप सभी प्रशासन से जुड़े हुए है और प्रशासन द्वारा फसल अवशेष जलाने वाले किसानों के खिलाफ कड़ी कार्यवाही अमल में लाई जा रही है। इसलिए आप अपनी डयूटी गंभीरता से निभाएं। इस कार्य में किसी भी स्तर पर लापरवाही नहीं बरती जाए।
बाक्स:- फसल अवशेष न जलाए, बल्कि आधुनिक उपकरणों से करें प्रबंधन।
खंड कृषि अधिकारी डॉ. अश्वनी काम्बोज ने किसानों से आह्वान किया कि खेतों में फसल कटाई के बाद फानों में आग न लगाएं, बल्कि उनका खेत में ही समुचित प्रबंधन करें। फसल अवशेष जलाने से उत्पन्न होने वाले धूंए के कारण हमारा पर्यावरण लगातार दूषित होता जा रहा है, जिसकी वजह से अनेक जानलेवा बीमारियां पैदा होती है। उन्होंने कहा कि किसान सुपर सीडर की मदद से खेत में ही फसल अवशेषों का प्रबंधन कर आसानी से फसल की बिजाई कर सकते हैं, ऐसा करने से हमारी जमीन की उर्वरा शक्ति भी बढ़ती है। सुपर सीडर की मदद से फसल अवशेष पूरी तरह मिट्टी में मिल जाते हैं।
खंड कृषि अधिकारी डॉ. अश्विनी काम्बोज ने बताया कि फसल अवशेष जलाने से पोषक तत्वों का नुकसान होता है। फसल अवशेष जलाने से शत-प्रतिशत नाइट्रोजन व काफी मात्रा में सल्फर का नुकसान होता है तथा इसके साथ-साथ जैविक पदार्थ नष्ट हो जाते हैं। उन्होंने ने बताया कि फसल अवशेष जलाने से कार्बन मोनोऑक्साइड, कार्बन डाइऑक्साइड, राख, मीथेन व अन्य अशुद्धियाँ उत्पन्न होती है। इससे वायु प्रदूषण बढ़ता है। उन्होंने बताया कि बताया कि फसल अवशेष में आग लगाने से आसपास के खेतों में खड़ी फसलों में आगजनी का भी भय बना रहता है। पराली प्रबंधन हेतू सरकार द्वारा किसानों के लिए अनेकों योजनाएं चलाई है। यदि किसान अपने खेत में पराली प्रबंधन का कार्य करता है तो उसे सरकार की ओर से एक हजार रूपये प्रति एकड़ की दर से प्रोत्साहन राशि भी उपलब्ध करवाई जाती है।
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